Saturday, June 5, 2010

दिमाग से कचड़ा अलग करो

              हम जब किसी से मिलते है तो हमें उससे उस तरह मिलना चाहिए जैसे की वह हमें आज ही मिला हो। उससे हमारी पहली मुलाकात हो । इस तरह से हम सामने वाले पर अपने व्‍यक्तिव की एक ऐसी छाप छोड़ सकते है जिससे वह कभी भूल ही नहीं सकता और वह हमेशा आपको याद रख सकता है। होता यह है कि जब भी हम किसी से बात करने या मिलने के लिए जाते है तो हम उसके दसों साल पुराना इतिहास  के आंकड़े अपने दिमाग में जमा कर ले जाते  है।जैसे ही उस व्‍‍यक्ति से बात करना शुरू होती है तो दिमाग में जमा पुराने आंकड़े हमारे विचारों पर प्रभाव डालना शुरू कर देते है जिससे हमारे व्‍यवहार में बदलाव आ जाता है। हम सहज नहीं हो पाते और कई बार वह व्‍यक्ति की सही बात भी हमे भ्रामक लगने लगती है। यह बात गलत है। होना यह चाहिए कि जब भी हम किसी से मिलने पहुंचे तो उसके पुराने इतिहास का अपने दिमाग से निकाल कर रख दें। हम यह सोचें कि इससे हमारी पहली मुलाकात है और जब किसी से पहली मुलाकात होती है तो यह तय है कि हम उसके प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं पाल सकते । हमारे व्‍यवहार में अपना पन होता है और ताजगी होती है जिससे सामने वाला प्रभा‍वित हुए बिना नहीं रह सकता । यह कहलाती है वालि शक्ति ,इसका हमे अपने दैनिक जीवन में उपयोग करना चाहिए।
                रामायण में वालि को मारने के लिए भगवान श्री राम को भी पेड़ का सहारा लेना पड़ा था । स्‍वयं महाबली भगवान को भी छिप कर वालि का वध करना पड़ा। वालि को वरदान था कि जो भी  व्‍यक्ति उस के सामने आयेगा उसकी आधी शाक्ति उस में चली जाएगी।  भगवान जानते थे कि वालि एक अच्‍छा वानरराज है और यदि इससे मेरी बात हो गयी तो में इसके बातों से मैं प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाउंगा और इसे नहीं मार पाउंगा,इसलिए उन्‍हें भी छिप कर बार करना पड़ा। जब स्‍वयं भगवान अच्‍छे विचार बालों से प्रभावित हो जाते है तो इंसान की क्‍या बिसात।बस उसमें पूर्वाग्रह ना हो।
           मुझे इस बात एहसास आज इतनी गंभीरता से हुआ कि मैं  बिना लिखे रह नहीं सका। मेरे एक बहुत करीबी  है उनकी सबसे अच्‍छी बात यह है कि इस आपाधापी के दौर में वे जैसे 15 साल पहले थे वैसे ही आज है। उनके साथ काम करने वाले लोगों आज पता नहीं कहॉं से कहॉं पहुंच गए ,पर उनके जीवन के प्रति तटस्‍थ भाव ने और अपने काम के प्रति ईमानदारी ने उन्‍हें ज्‍यों का त्‍यों रखा। मैने देखा की उन्‍होंने कभी किसी के प्रति पूर्वाग्रह नहीं पाला । हमेशा सभी के साथ एक से सबंध। आज जब में उनके पास बैठा था तो वे  किसी से बात कर रहें थे तो उनके व्‍यवहार में उस व्‍‍यक्ति के प्रति एक अजीब सा रूखापन था । फोन लगाते ही उनके चहरे पर एक अजीब की कठोरता आ गई। फोन चालू होते ही जो बात करने का लहजा था वह बड़ा बेरूखा था । मुझे उनके इस व्‍यवहार पर आर्श्चय हुआ । पर मुझे लगा कि आज इनके दिमाग पर भी पुराने पर्चो ने  कब्‍जा जमा लिया है और उनके व्‍यवहार को बदल दिया।
         दैनिक जीवन में हमेशा ऐसा ही होता है कि हम अपने दिमाग में इतना कचड़ा जमा कर लेते हैं कि वह  कचड़ा हमारे व्‍यवहार को बदल देता है । यदि हम अपने दिमाग से यह कचड़ा अलग कर दें तो हम उस बच्‍चे की तरह हो जाएगें जो यह कभी नहीं सोचता की फलां व्‍यक्ति अच्‍छा है या बुरा। वह हर किसी को देख कर मुसकरा देता है और सबसे अच्‍छी बात यह होती है कि उसकी मुसकराहट को देखकर बुरा व्‍यक्ति भी हसंने लगा है और उससे प्‍यार करने लगता है।










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