Sunday, June 6, 2010

जाति के नाम पर सरकार का छलावा

         आज जाति पर आधारित जनगणना का मुद्दा गरमाया हुआ है।जगह-जगह संगोष्‍ठी हो रहीं हैं। संसद में बहस हो रही है,पार्टी के नेता मीडिया के सामने उछल-उछल के जनता के प्रति अपनी झूठी सदभावना दिखा रहे है। नेता और जनता मंहगाई का मुद्दा भूलकर जाति के मुद्दे पर मंथन में लग गये है। सरकारें कभी आम जनता से यह पूंछती है की वे तुअर की दाल की कीमत 50 रूपये से 100 रूपये करने जा रही है,इस मुददे पर जनता की राय जरूरी है। पेट्रोल,बिजली की कीमत बढ़ा रही है इस पर आम जनता की राय लेने की जरूरत है । कभी नहीं होता सरकार अपना बजट देखती है और कीमतों को बढ़ाती है। तब उसे किसी आम आदमी से राय लेने की जरूरत नहीं लगती ।आज जातिआधार पर जनगणना में सरकार के बजट पर कोई असर नहीं पढ़ने वाला सो इस बेरूखे मुद्दा को जनता के बीच उछाला जा रहा है। राजनेताओं को कितना आसान होता है आम जनता को बेवकूफ बनाना। मंहगाई कितनी भी बढ़ जाए देश में संगोष्‍ठी नहीं होती।संसद में थोडी बहस के बाद 1-2 रूपये कम कर बढ़ी मंहगाई को कम कर दिया जाता है। लोग खुश हो जाते है कि चलो 2 रूपये कम हुए ।
       जाति के आधार पर जनगणना का मुद्दा केवल राजनीति से प्रेरित है। सरकार जनगणना कराती है हर परिवार के 50 प्रकार की जानकारी जनगणना के प्रपत्र में भरी जा रही है। सरकार उसमें जानकारी के साथ लोगों की जाति भरवा रही है ।सरकार जनगणना विभाग से जातियों की जानकारी अलग से भी ले सकती है। इसमें आम लोगों के पास मुद्दा उठाने से क्‍या फायदा। मुझे नहीं लगता की सिर्फ नेताओं के अलावा किसी को भी जाति आधारित जनगणना में कोई रूझान होगा। आम आदमी को जीवन की मूलभूत चीजों की जरूर है वह‍ किसी भी आधारित जनगणना से मिले। आम आदमी  मंहगाई,पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों पर ध्‍यान ना दे । लोगों को ध्‍यान बटाने के लिए राजनीतिक चालबाजी है। सरकार हमेशा कुछ ना कुछ मुद्दा उठाकर लोगों का ध्‍यान उस मुद्दे की ओर खीचने के लिए षड़यंत्र करती रहती है जिससे सरकार को आम आदमी घेरने का प्रयास ना करे।
      आज देश नक्‍सली समस्‍या पर संगोष्‍ठी नहीं होती। अखबार इसके लिए कोई सर्वेक्षण नहीं करता। देश में बढ़ते भ्रष्‍टाचार पर संगोष्‍ठी नहीं की जाती,क्‍योकि इसमें राजनेताओं का हित नहीं होता है। जाति आधारित जनगणना पर संगोष्‍ठी कराने इस मुद्दे को गरमाने में सरकार का भला है।आम लोगा का मूल समस्‍याओं से ध्‍यान हट जाए सरकार की मंशा पूरी हो जाए। मैं तो यह कहता हूं कि  जनगणना का काम ईमानदारी से सरकार करवा ले,चाहे जाति के आधार पर या बिना जाति के आधार पर इससे आम आदमी को कोई फर्क नहीं पड़ना। यदि ये राजनेता हकीकत में देश का भला चाहते है तो इस जनसंख्‍या पर नियत्रंण की कारगर योजना बनाए।देश में जो लोग भुखमरी से मर रहे है उनकी जिंदगी की योजना बनाए। नक्‍सलियों से देश में बेगुनाह जनता मारी जा रही है उसकी योजना बनाए। संसद में बैठकर इन मुददों पर बहस करें तो कुछ देश की जनता का भला हो सकता है। जाति के आधार पर आकड़े होने या ना होने  से कुछ हासिल नहीं होगा । किसी का भला नहीं होना जब तक राजनैतिक इक्‍छाशक्ति इस देश के विकास करने की ना हो ।
इस तरह के मुददो को उठाकर ये सरकारे आम आदमी को छलने के अलावा कोई काम नहीं कर सकती। 

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