Monday, June 7, 2010

फांसी की सजा खत्‍म करो

                    सरकार को एक प्रस्‍ताव लाना चाहिए और कानून व्‍यवस्‍था से फांसी की सजा के प्रावधान को बदल देना चाहिए। इस प्रस्‍ताव को पास करने में सरकार को कोई विरोध भी नहीं झेलना पड़ेगा। मुझे लगता है कि यह सबसे ज्‍यादा आम स्‍वीकृति से पास होने वाला प्रस्‍ताव होगा। इस प्रस्‍ताव का एक फायदा यह भी होगा की न्‍याय की आशा लगाये लोगों का न्‍याय पालिका से विश्‍वास नहीं उठेगा। माननीय न्‍यायालयों की इस ना मिलने वाली फांसी की सजा देने से मुक्ति मिल जाएगी। अफजल और कसाब जैसे हाल के ही उदाहरण है जिन्‍हें फांसी की सजा मिलने के बाद भी आज तक यह फैसला नहीं हो पाया की फांसी कब होगी। जिनके परिवार के लोगों को इन्‍होंने निशाना बनाया वे बर्षो तक इस बात का इंतजार ही करते रहेंगे की कब वह दिन आएगा और इन दरिंदों को सूली पर लटकाया जाएगा। पर मुझे तो यह लगाता है कि जो इंतजार कर रहे है वे इस दुनिया से विदा हो जाएगें पर ये दरिंदे यहां जीवित रहेगे और देश के लोगों के पैसों से ऐश करते रहेंगे। राजनेताओं के दफ्तरों में इनकी फाइलें धूल खाती रहेंगी और हम आशा करते रहेंगे की हमारे साथ कभी तो न्‍याय होगा।
       भारत सहनशीलों का देश है । यहां के लोग धैयवान है। इनका सब कुछ लूट भी जाय तो ये उफ नही कर सकते । इसका सबसे बड़ा उदाहरण आज 25 साल बाद भोपाल गैस कांड के फैसले के बाद पीडि़त लोगों चिल्‍ला चिल्‍ला कर कह रहें है।  हम केवल जिन्‍दा है पर हमारी आत्‍मा मर चुकी है।हमे मारो काटो हम कुछ नहीं कहेंगे। हमें मारने वालों को तुम छोड़ तो तो भी हम कुछ नहीं कहेंगे क्‍योकि हम जिन्‍दा है । हम कायर नहीं धैयवान है जिन्‍होंने  हमे हजार बार लूटा है हमारी उन पर आज भी आस्‍था है और हम उन्‍हीं के नेतृत्‍व में लुटते रहेंगे। हम सहनशील है हमारी आखें चली गई तो क्‍या,हमारे बच्‍चे हमेशा के लिए विकलांग हो गये तो क्‍या ,मॉ बाप का साया हमारे से उठ क्‍या तो क्‍या पर हम सहनशील है। उस न्‍याय पालिका में हमे विश्‍वास है जिसमे एक छोटे से न्‍याय के लिए भी 20 साल लग जाते है आरोपी और फरयादी दोनों ही चल बसते है । फिर तो यह 16 हजार लोगों की मौत का मामला है इसमें 200 साल तो लग ही जाएंगे। पर हमारे बच्‍चे उसमें यकिन करते है की देर से सही पर फैसला होगा। आज 25 साल बाद जो फैसला हुआ उससे हम खुश नहीं है पर हमें किसी से शिकवा नहीं है हम आगें 25 साल और लड़ाई लड़ेगे।लड़ो लड़ाई आरोपियों में एक तो मर चुका है बाकी आधे से ज्‍यादा के पैर कब्र में लटके हुए है। अगले 25 साल बाद जब फैसला होगा तब हम उनकी कब्र पर फूल चढ़ाने के लिए जाएगे ।भारत संस्‍कारवानों का देश है मरे आदमियों की आत्‍माओं को दुखी नहीं करता है। जब फूल ही चढ़ाने है तो इस तरह की लड़ाई शुरू ही क्‍यो हुई।16 हजार लोगों की सार्वजनिक मौत और 5 लाख से ज्‍यादा घायलों की श्रेणी में आये लोगों को न्‍याय दिलाने के उन्‍हें 25 साल इंतजार करना पड़ा तब भी सही न्‍याय नहीं मिला । और कितना इंतजार करना होगा।
              


        

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