Wednesday, May 26, 2010

बचपन में खो जाएं

व्‍यक्ति अपने विचारों से अपने आप को लगातार कैद करता है। वह इतनी सीमा रेखाएं स्‍वत: ही बना लेता है। एक समय ऐसा आता है जब वह अपनी विचारों के द्वारा खींचे गए इस जाल में इतना उलझ जाता है की वह चाह कर भी नहीं निकल पाता । उसे हर ओर बंधन ही नजर आते है ।मैने अक्‍सर देखा है कि हम एक दुसरे के प्रति अपने विचारों के द्वारा इतनी दूरियां बना लेते है की जब कभी सहज ही हमारा उसके पास जाना भी होता है तो हम विचारों द्वारा खींची गई रेखाओं को लांघ नहीं पाते । यह सबसे विकराल समस्‍या है हमारे जीवन की। एक छोटा बच्‍चा जिसके पास किसी भी तरह के विचार नहीं होते पर जो भी उसे प्‍यार से बुलाए चला जाता है ना उसे कोई भय होता है ना कोई सीमा। वह हर किसी को प्रेम के दृष्टि कोंण से देखता है । यह बात हमें उस बचपन से सीखना चाहिए।
मेरा बालक तेजस्‍व अभी दो साल का है। मै उसकी शरारतें देखता हूं तो मेरे अंदर एक अजीब सा भाव पैदा होता है मैं इस बात को सोचने पर मजबूर हो जाता हूं की यह आज इस भोलापन आगें चल कर इस आपाधापी के युग में मैं उसका बचपन कैसे बचा संकू । मेरा मन भावुक हो उठता है जब मैं उसकी छोटी छोटी शरारतें जिन्‍हें वह अंजाने में करता है पर होती बहुत सुंदर है।ये छोटी छोटी शरारतें समय के साथ अपनी सुंदरता खो देती है ।मैं सोचता हू कि कैसे उसकी ये छोटी छोटी शरारतें हमेश सुंदर बनी रहें। इस समय उसका हर किसी से मिलना,मुस्‍कराना सभी का उसको प्‍यार करना देखकर मेरी आखों  भर जाती है । मै फिर भी सोचता हूं कि क्‍या इसका ऐसे ही हर किसी से मिलना,मुस्‍कराना और सभी का प्‍यार करना हमेश बरकरार रख सकूंगा।
मुझे लगता है कि बचपन कभी खत्‍म नहीं होना चा‍हिए। बचपन के खत्‍म होती ही सारी समस्‍याएं शुरू हो जाती है हमें बहुत से काम इसी बचपन की तरह अंजाने में करना चाहिए जिसमें कोई छल नहीं होता।किसी के प्रति दुरभावन नहीं होता । कितना अच्‍छा हो कि हम सभी बचपन में चले जाए और उसी निश्‍छलता के साथ अपने कामों को अंजाम दे तो ये दुनिया कितनी सुंदर होजाए। ये आपसी लड़ाई झगड़े,एक दुसरे के प्रति  धृर्णा खत्‍म हो जाए और यह ईश्‍वर की रचना सार्थक हो जाए।
मुझे पता है कि यह संभव करना आसान नहीं है पर एक विचार को अपने मन में हम स्‍थापित तो कर सकते है।

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