Sunday, May 23, 2010

निर्णय के लिए सापेक्ष दृष्टि जरूरी

             रोशनी अच्‍छी होती है और अंधकार खराब,यह सहज ही नहीं कहा जा सकता। इसके लिए सापेक्ष दृष्टि की आवश्‍यकता होती है। अपने व्‍यक्तिव का विकास और आत्‍मचिंतन तो अंधेरे में ही हो सकता है,तो अंधकार खराब कैसे हो सकता है। यह बात जीवन के कई पक्षों में समझने की होती है क्‍योंकि हम किसी भी विषय के बारे में बिना अपनी सापेक्ष दृष्टि के निर्णय देते है कि फलां खराब है और फलां अच्‍छा।हमेश उदृदीपन और प्रतिक्रिया के बीच खाली स्‍थान होता है हमे अपनी प्रतिक्रिया देने के पहले उस खाली स्‍थान समझना चाहिए और समझ कर खाली स्‍थान को भरना चाहिए जिससे आपकी प्रतिक्रिया सही हो। होता यह है कि हम बिना सोचे समझे अपनी प्रतिक्रियाएं दे देते है । किसी को कुछ भी जबाव दे देते है जिसके परिणाम गंभीर भी हो जाते है। 
              मेरा एक मित्र है जो मेरे साथ काम करता है। उसकी सबसे अच्‍छी आदत है कि वह बेहद जिज्ञासु है। किसी भी विषय पर उससे बात करने पर उसके अंदर जिज्ञासा पैदा होती है। परंतु वह अपनी बात को सही् ढंग से प्रस्‍तुत नहीं कर पाता।उसका कारण मुझे समझ में आता है कि वह उदृदीपन और प्रतिक्रिया के बीच के  खाली स्‍थान को  अपनी सोच में नहीं रखता और बात का बिना सोचे समझे जबाव दे देता है जो कि अक्‍सर उसके लिए परेशानी खड़ी करता है। परिणाम ये निकलता है कि वह किसी के बारे में भी एक निश्‍चित दृष्टि बना लेता है और उसी चश्‍में को लगाकर उसे देखता है जिससे यदि कोई उसके फायदें की बात भी करें तो उसे उसके प्रति इतना पूर्वाग्रह होता है कि उसे उसकी सही बात भी गलत ही लगती है। यह केवल मेरे मित्र की समस्‍या नहीं है यह हमेशा लगभग हर व्‍यम्ति के सा‍थ होता है।

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