Tuesday, July 13, 2010

समस्‍या से ही समाधान

 हमें समस्‍या के विषय में नहीं बल्कि समाधान के विषय में सोचना चाहिए। जो हो गया उसका चिंतन तो हमें छोड़ ही देना चाहिए। जो हो गया है उसमें आप कुछ भी नहीं कर सकते पर अब जो हो सकता है उसमें तो आप जरूर कुछ ना कुछ करके होने वाले परिणाम को प्रभावित कर सकते हो। होता यह है कि जब हम किसी मुश्‍किल में फंस जाते है तो हम समाधान की बात तो सोचते ही नहीं है। बल्कि हम उस समस्‍या के बारे में ही चिंतन किए जाते है। ऐसा कहा भी जाता है कि भय का राक्षस केवल भय को खा कर ही बड़ा हो ता है और डर से ही डर पैदा होता है । हम समस्‍या से समस्‍याओं को जन्‍म देते है। जीवन में आई समस्‍याओं से तनिक भी विचलित होने की आवश्‍यकता नहीं है। आप समस्‍याओं के सामने घबराते है तो निश्‍चित ही आपका विनाश होगा।
मुझे एक घटना याद है । आज से कुछ समय पहले मैं एक ऐसी मुश्किल में फंस गया था कि जिससे जितना भी निकलने की कोशिश करता मेरा मन उसी समस्‍या के पीछे भागने से नहीं रूकता । मैं दिन में कई बार कोशिश करता की मेरा मन उस समस्‍या के पीछे ना भागे पर वह मानता ही नहीं । मुझे लगभग 15 दिन हो गए । मेरा किसी काम में मन ही नहीं लगता था। मेरे साथ इन 15 दिनों में इतना कुछ घटा की मैने ने जीवन के लिए कल्‍पना की जितनी इमारतें खड़ी की थी वे मेरे एक एक करके सब ढह गई।मैं उस समय अपने आप को इतना विवश महसूस कर रहा था कि मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पाया। कभी-कभी ऐसा होता है कि आप कितने भी सझम हो पर कुछ मामलों में आप इतने विवश हो जाते हो कि चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते । मुझे मेरी असफलता ने झकझोर दिया। मुझे लगा की मैं क्‍यों नहीं अपनी मुठ्ठी बंद कर पाया ।मेरे सारे सुख मुठ्ठी से रेत की तरह बह गए। इस तरह के अवसाद में मैने अपने आपको पाया। एक दिन में इन्‍हीं विचारों में खोया बैठा था । तभी मेरा बेटा घर बनाने के अलग-अलग रंग के टुकड़ेनुमा खिलौने से मेरे पास आकर घर बनाने लगा। मैं उसे बहुत गौर से देख रहा था तो मैने देखा की दो साल का मेरा बेटा उन टुकड़ों को जोड़ने मे लगा है। जो टुकड़ा उससे जुड़ा उसको जोड़कर दूसरे से मिलाने लगा और जो नहीं जुड़ रहा था उसमें अपना दिमाग खर्च ना कर एक तरफ रखता जा रहा था। शायद वह यह सोच रहा था कि पहले जो टुकड़े आपस में जुड़ रहे है उन्‍हें तो जोड़ा जाए बाकी जो समस्‍या पैदा कर रहे है उन्‍हें बाद में देखेंगे। उसके इस तरह के वर्णीकरण ने मेरी आंखे खोल दी। मुझे लगा सच में यह कितना आसान है कि जो जुड़ रहा है उसे तो जोड़ो और जो समस्‍या पैदा करते है उन्‍हे एक तरफ रख दो बाद में देखेंगे।मुझे उससे एक नई प्रेरणा मिली। और मैने तय किया कि जीवन में भी इसी तरह का वर्णीकरण होने से कई मुश्किलों पर विजय आसानी से पाई जा सकती है।
समस्‍याएं तो हमेशा सामने आती है उससे घबराने की जरूरत नहीं है । सिर्फ जरूरत है उसका वर्गीकरण करने की । उसको टु‍कड़ों में बाटने की जिससे जो चीज आसानी से हल हो जाए से पहले करने से मन को शांति मिलती है और फिर विश्‍वास पैदा होता है कि हम हल कर सकते है । इसी तरह मैने अपनी मुश्किलों को क्‍लासिफाइड किया और उस बच्‍चे की तरह हर समस्‍या के सकारात्‍मक पहलूओं को जोड़ा। आप आश्‍चर्य मानेंगे कि उन सकारात्‍मक पहलूओं को जोड़ने के बाद जो समस्‍या का मूल स्‍वरूप था वह बदल गया और मुझे हर तरह से हल नजर आने लगा । मेरे अंदर इतना आत्‍मविश्‍वास पैदा हुआ कि मुझे लगा की मैं इन मुश्किलों से आसानी से निकल सकता हूं।
 मेरा कहने का आशय यह है कि समस्‍याओं से घबराने की जरूरत नहीं बल्कि उसका सामना करने की जरूरत है । यदि हम समस्‍याओं का सामना करें तो आप देखेंगे की उसके हल उसी से निकल आते है।हमें समस्‍या के बारे में ना सोच कर समाधान के बारे में सोचना चाहिए।

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