Monday, July 19, 2010

कल्‍पनाओं से पैदा अपरिचित घातक

कई बार हम किसी घटना को देखकर उत्‍तेजित हो जाते है और हम उसे रोक नहीं पाने के कारण हमारे मस्‍तिक में उस घटना का चिंतन चलता रहता है। कुछ लोग होते है जो घटनाओं को कुछ समय बाद भूल जाया करते है। कुछ लोगों के दिमाग से घटना हटती नहीं है और वे रोज उस तरह की घटना का चिंतन करते है। उससे रोकने के लिए अपनी कल्‍पनाओं के सहारे उस विलेन को तरह तरह से मारते रहते है। इस तरह अपनी कल्‍पनाओं के सहारे विलेन को रोज तरह तरह से मारने से कभी-कभी हमारे मस्‍तिक में एक ऐसा किरदार पैदा हो जाता है जो उस तरह की घटनाओं को देखकर अपने आप उत्‍तेजित होने लगता है। हमारे मूलस्‍वरूप हो इस बात का पता ही नहीं चल पाता की हमारा मस्‍तिक कब उत्‍तेजित हुआ और कब शांत। इस किरदार को हम अपरिचित कह सकते है। ऐसा सिर्फ घटनाओं को देखकर नहीं बल्कि हम किसी से प्रेम करें या किसी चीज को पाने की इच्‍छा या इस तरह की कई बातों पर भी लागू होती है। कुल मिलाकर हम यह कह सकते है कि जो कल्‍पनाएं पूरी नहीं होती और हम उसमें लगातार गुथे रहते है।जिससे एक अलग किरादार हमारे म‍स्‍तिक में जन्‍म लेता है। वह फिर अपने तरह से एक अलग भूमिका में काम करने लगता है।
      मैं आपको कोई काल्‍पनिक कथा नहीं सुना रहा हूं बल्कि मैं स्‍वयं का उदाहरण देकर अपनी बात स्‍पष्‍ट करना चाहता हूं। बचपन में मुझे एक ऐसे दोस्‍त की कल्‍पना थी जिसको यदि मेरे गुरूजी सजा दे तो मैं उस दोस्‍त की सजा भी खुद अपने ऊपर ले लू। उसकी सारी गल्तियां अपनी बता कर उसको शेफ रखूं। इस तरह की कल्‍पना के साथ मैं अपने दोस्‍त की तलाश करने लगा। मुझे एक दोस्‍त मिला जिसको मैं अपनी कल्‍पनाओं के अनुरूप चाहने लगा ।  कुछ दिनों बाद उसने स्‍कूल छोड़ दिया और मैं फिर अकेला हो गया। वह दोस्‍त तो चला गया पर मेरे अंदर अपने दोस्‍त के प्रति कल्‍पानाएं बढ़ती ही जा रहीं थी। जिससे मुझे पता नहीं चला कि कब मेरे मस्तिक में एक किरदार ने जन्‍म ले लिया। उस किरदार के कारण जब भी मुझे कोई दोस्‍त मिलता तो मेरा मूल दिमाग शून्‍य हो जाता और उस अपरिचित किरादार के इशारों पर मेरा दिमाग चलने लगा। वह अपरिचित एक ऐसा दोस्‍त तलाशने लगा जो कभी मुझसे दूर ही ना जाए । उसने ऐसा किया भी,जब मुझे एक दोस्‍त मिला तो उसने उसे 14 साल अपने घर से दूर रखा।मेरी अपनी कल्‍पना से जन्‍में किरदार ने मेरे और मेरे दोस्‍त के दिमाग पर इस तरह का कब्‍जा जमाया की वह सब कुछ भूल गया । जो मेरे माध्‍यम से मेरा अपरिचित किरदार कहता वह करता जाता।14 साल बाद एक ऐसी हवा चली कि मेरे किरदार  और मेरे दोस्‍त ने जो कल्‍पनाओं के महल खड़े किए वे सब गिरने लगे तो मेरे दिमाग का वो अपरिचित किरदार बैचेन होने लगा । मेरे दोस्‍त को मुझसे दूर होना पड़ा। तब कहीं मेरा दिमाग मूल चेतना में लौटा। मैने तब अपने पीछे जो कुछ हुआ उसे सोचा हो मुझे इतना आश्‍चर्य हुआ की मैं बता नहीं सकता । मैने स्‍वयं उस अपरिचित को महसूस किया। उसने अपने दोस्‍त को पाने के लिए वे वे कारनामें किए जो मैं सामान्‍य रूप से कभी नहीं कर सकता था। पर उस समय में उसके आवेग में था।
मेरा कहने का आशय है कि हर व्‍यक्ति के अंदर अपरिचित किरदार है।वे आदमी के अधूरी कल्‍पनाओं के सहारे जीवित हो जाते है। यदि कल्‍पना अच्‍छी है तब तो बात ठीक है । पर यदि कल्‍पना ठीक नहीं है तो यह किरादार विनाश भी करा देता है। कई दफा हम सुनते है कि फंला ने ऐसा कर दिया यकिन नहीं होता वह तो बड़ा सीधा था। यह सब इस अपरिचित के कारण ही होता है।
हमें इस तरह की आदतों में सुधार अपने आप में और अब अपने बच्‍चों में भी करना चाहिए । हमें यह आदत डालनी चाहिए की कोई भी चीज जिससे हम पाना चाहते है यदि वह हमें नहीं मिल पाती है तो हमें अनावश्‍यक उसके बारे में एकांत में कल्‍पना के ताने बाने नहीं बुनना चाहिए। अक्‍सर ऐसा होता है कि हमारा किसी से बैर हो जाता है और हम उसका कुछ नहीं कर पाते तो हम रात में सोते समय अक्‍सर कल्‍पनाओं के सहारे उसका बुरा करते रहते है । यह सब बहुत घातक होता है। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए । पहली बात हमें यह समझ लेना चाहिए की हमारा कोई अहित नहीं कर सकता ना ही हमें कोई जलील कर सकता है जब तक की हम स्‍वयं जलील होना नहीं चाहे। किसी की कल्‍पनाओं के सहारे हत्‍या करने से उसक कुछ नहीं होता बल्कि हमारे स्‍वस्‍थ विचार होते है उनकी जरूर हत्‍या हो जाती है जो बहुत हानिकारक होती है। दिमाग से नकारात्‍मक विचारों को निकालों । अच्‍छी कल्‍पनाओं को जमा करों और अपने अंदर उस अपरिचित को जन्‍म ना होने दो।

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