खुशी और गम के भाव से बने इस जीवन में मुझे लगता है कि हर व्यक्ति के जीवन में एक ऐसा समय आता है जब वह ना तो खुशी व्यक्त कर पाता है, ना ही गम । यह सबसे कठीन परिस्थिति होती है।जब अपने भाव को वह चाह कर भी व्यक्त नहीं कर पाता । वह समझ ही नहीं पाता की वह खुशी व्यक्त करें या गम।
इसी तहर का दौर शायद मेरे जीवन में एक चक्र के बाद आता है। जब में कुछ मिलने की खुशी और खोने का गम व्यक्त नहीं कर पाता ।यह तटस्थ भाव मुझे एक अजीब सी बैचेनी देता है । मैं इस बात के को सोचने के लिए मजबूर हो जाता हूं कि आखिर इतना संघर्ष क्यों। परिणाम जब विपरीत आता है तो क्यों किया जाए संर्धष।
आज सुबह मेरे साथ कुछ ऐसा ही हुआ मुझे कहीं जाकर पता चला कि मुझे कुछ मिलने वाला है जिसकी मैं लगभग दो माह से जानने की उत्सुकता लिए रोज एक नये सपने के साथ अपने काम को अंजाम दे रहा था।
वैसे तो उस मिलने वाले विषय का मै दो साल से इंतजार कर रहा था पर हाल ही में तय हुआ की इस बार आपको वह मिल सकता है,जिसका आपको इंतजार है। आज सुबह जब मैं वहां पहुंचा तो मुझे जानकारी लगी की आपकी उत्सुकता को विराम लग गया है आपका नाम के आगे आपको मिलने वाले विषय की जानकारी अंकित है। मैं लपककर पंहुचा और देखा तो मेरे अंदर अपने भावों को व्यक्त करने के तटस्थ भाव आ गया। मैं तय नहीं कर सका की क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करूं।
कभी कभी ऐसा होता है कि आप अपना काम बहुत ईमानदारी के साथ करते हैं परंतु आपके उस काम की सही कीमत आपको नहीं मिल पाती। इसका कारण कई दफां यह हो जाता है कि जिनके साथ आप काम करते हो वे आपके काम को समझना नहीं चाहते और आपके प्रति एक निश्चित दृष्टि कोंण बना लेते है जिससे आपके अच्छे एवं बुरे सारे काम एक ही मानक से तय होते है जिससे आपकी मेहनत को सही परिणाम नहीं मिल पाता।
मुझे एक बात और इस मसले में और समझ में आती है कि आपकी सफलता आपके व्यवहार को लेकर लोगों को आपके प्रति एक भ्रंति पैदा हो जाती है और वे आपको नकारने के लिए कोई ना कोई उपाय करने लगते है।
परिस्थिती आपके विपरीत हो तब भी आपको काम तो करना ही होता है। मैने स्वयं आत्मचिंतन किया और तब मुझे एहसास हुआ कि जीवन में अच्छा और बुरा कुछ नहीं होता यह सब मनोभाव है । हम स्वयं पैदा कर परेशान हो रहे है। आप अपने काम को ईमानदारी और धैर्य के साथ करते रहो। परिणाम हो सकता है कि तुरंत ना मिले पर ऐसा कभी नहीं होता है कि ईमानदारी से किया गया काम को परिणाम कभी ना मिले। कर्म के सिद्धांत में मनोदशा को नहीं जोड़ना चाहिए । आपका लक्ष्य निश्वित होना चहिए और उसके प्राथमिक स्टेजों पर जो भी परिणाम आते है उनसे अपने आपको हत्तोसाहित नहीं करना चाहिए । परिणाम आज आपके अनुकूल नहीं है कारण कुछ भी हो पर कल आएगा, आपको अपनी इक्छा के अनुसार परिणाम मिलेगा। इस सब की शर्त है की आपको धैय का साथ नहीं छोड़ना होगा। होता यह है कि अक्सर एकाध परिणाम विपरीत आने पर हम इस कदर अवसाद में चल जाते है जैसे सब कुछ खत्म को गया।
मैने यह इस लिए लिखा, क्योंकि मेरे मन में सवाल जबाव का इतना दौर चल रहा था कि इससे अच्छा व्यक्त करने का मुझे कोई तरीका नहीं मिला।
हमेशा सब हमारे मन के मुताबिक नहीं होता। जीवन इसी का नाम है। निराश मत हो और अपना काम करो।
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