Monday, July 19, 2010

कल्‍पनाओं से पैदा अपरिचित घातक

कई बार हम किसी घटना को देखकर उत्‍तेजित हो जाते है और हम उसे रोक नहीं पाने के कारण हमारे मस्‍तिक में उस घटना का चिंतन चलता रहता है। कुछ लोग होते है जो घटनाओं को कुछ समय बाद भूल जाया करते है। कुछ लोगों के दिमाग से घटना हटती नहीं है और वे रोज उस तरह की घटना का चिंतन करते है। उससे रोकने के लिए अपनी कल्‍पनाओं के सहारे उस विलेन को तरह तरह से मारते रहते है। इस तरह अपनी कल्‍पनाओं के सहारे विलेन को रोज तरह तरह से मारने से कभी-कभी हमारे मस्‍तिक में एक ऐसा किरदार पैदा हो जाता है जो उस तरह की घटनाओं को देखकर अपने आप उत्‍तेजित होने लगता है। हमारे मूलस्‍वरूप हो इस बात का पता ही नहीं चल पाता की हमारा मस्‍तिक कब उत्‍तेजित हुआ और कब शांत। इस किरदार को हम अपरिचित कह सकते है। ऐसा सिर्फ घटनाओं को देखकर नहीं बल्कि हम किसी से प्रेम करें या किसी चीज को पाने की इच्‍छा या इस तरह की कई बातों पर भी लागू होती है। कुल मिलाकर हम यह कह सकते है कि जो कल्‍पनाएं पूरी नहीं होती और हम उसमें लगातार गुथे रहते है।जिससे एक अलग किरादार हमारे म‍स्‍तिक में जन्‍म लेता है। वह फिर अपने तरह से एक अलग भूमिका में काम करने लगता है।
      मैं आपको कोई काल्‍पनिक कथा नहीं सुना रहा हूं बल्कि मैं स्‍वयं का उदाहरण देकर अपनी बात स्‍पष्‍ट करना चाहता हूं। बचपन में मुझे एक ऐसे दोस्‍त की कल्‍पना थी जिसको यदि मेरे गुरूजी सजा दे तो मैं उस दोस्‍त की सजा भी खुद अपने ऊपर ले लू। उसकी सारी गल्तियां अपनी बता कर उसको शेफ रखूं। इस तरह की कल्‍पना के साथ मैं अपने दोस्‍त की तलाश करने लगा। मुझे एक दोस्‍त मिला जिसको मैं अपनी कल्‍पनाओं के अनुरूप चाहने लगा ।  कुछ दिनों बाद उसने स्‍कूल छोड़ दिया और मैं फिर अकेला हो गया। वह दोस्‍त तो चला गया पर मेरे अंदर अपने दोस्‍त के प्रति कल्‍पानाएं बढ़ती ही जा रहीं थी। जिससे मुझे पता नहीं चला कि कब मेरे मस्तिक में एक किरदार ने जन्‍म ले लिया। उस किरदार के कारण जब भी मुझे कोई दोस्‍त मिलता तो मेरा मूल दिमाग शून्‍य हो जाता और उस अपरिचित किरादार के इशारों पर मेरा दिमाग चलने लगा। वह अपरिचित एक ऐसा दोस्‍त तलाशने लगा जो कभी मुझसे दूर ही ना जाए । उसने ऐसा किया भी,जब मुझे एक दोस्‍त मिला तो उसने उसे 14 साल अपने घर से दूर रखा।मेरी अपनी कल्‍पना से जन्‍में किरदार ने मेरे और मेरे दोस्‍त के दिमाग पर इस तरह का कब्‍जा जमाया की वह सब कुछ भूल गया । जो मेरे माध्‍यम से मेरा अपरिचित किरदार कहता वह करता जाता।14 साल बाद एक ऐसी हवा चली कि मेरे किरदार  और मेरे दोस्‍त ने जो कल्‍पनाओं के महल खड़े किए वे सब गिरने लगे तो मेरे दिमाग का वो अपरिचित किरदार बैचेन होने लगा । मेरे दोस्‍त को मुझसे दूर होना पड़ा। तब कहीं मेरा दिमाग मूल चेतना में लौटा। मैने तब अपने पीछे जो कुछ हुआ उसे सोचा हो मुझे इतना आश्‍चर्य हुआ की मैं बता नहीं सकता । मैने स्‍वयं उस अपरिचित को महसूस किया। उसने अपने दोस्‍त को पाने के लिए वे वे कारनामें किए जो मैं सामान्‍य रूप से कभी नहीं कर सकता था। पर उस समय में उसके आवेग में था।
मेरा कहने का आशय है कि हर व्‍यक्ति के अंदर अपरिचित किरदार है।वे आदमी के अधूरी कल्‍पनाओं के सहारे जीवित हो जाते है। यदि कल्‍पना अच्‍छी है तब तो बात ठीक है । पर यदि कल्‍पना ठीक नहीं है तो यह किरादार विनाश भी करा देता है। कई दफा हम सुनते है कि फंला ने ऐसा कर दिया यकिन नहीं होता वह तो बड़ा सीधा था। यह सब इस अपरिचित के कारण ही होता है।
हमें इस तरह की आदतों में सुधार अपने आप में और अब अपने बच्‍चों में भी करना चाहिए । हमें यह आदत डालनी चाहिए की कोई भी चीज जिससे हम पाना चाहते है यदि वह हमें नहीं मिल पाती है तो हमें अनावश्‍यक उसके बारे में एकांत में कल्‍पना के ताने बाने नहीं बुनना चाहिए। अक्‍सर ऐसा होता है कि हमारा किसी से बैर हो जाता है और हम उसका कुछ नहीं कर पाते तो हम रात में सोते समय अक्‍सर कल्‍पनाओं के सहारे उसका बुरा करते रहते है । यह सब बहुत घातक होता है। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए । पहली बात हमें यह समझ लेना चाहिए की हमारा कोई अहित नहीं कर सकता ना ही हमें कोई जलील कर सकता है जब तक की हम स्‍वयं जलील होना नहीं चाहे। किसी की कल्‍पनाओं के सहारे हत्‍या करने से उसक कुछ नहीं होता बल्कि हमारे स्‍वस्‍थ विचार होते है उनकी जरूर हत्‍या हो जाती है जो बहुत हानिकारक होती है। दिमाग से नकारात्‍मक विचारों को निकालों । अच्‍छी कल्‍पनाओं को जमा करों और अपने अंदर उस अपरिचित को जन्‍म ना होने दो।

Saturday, July 17, 2010

निश्चित ही विनाश होगा।

हमें समस्या के विषय में नहीं बल्कि समाधान के विषय में सोचना चाहिए। जो हो गया उसका चिंतन तो हमें छोड़ ही देना चाहिए। जो हो गया है उसमें आप कुछ भी नहीं कर सकते पर अब जो हो सकता है उसमें तो आप जरूर कुछ ना कुछ करके होने वाले परिणाम को प्रभावित कर सकते हो। होता यह है कि जब हम किसी मुश्किल में फंस जाते है तो हम समाधान की बात तो सोचते ही नहीं है। बल्कि हम उस समस्या के बारे में ही चिंतन किए जाते है। ऐसा कहा भी जाता है कि भय का राक्षस केवल भय को खा कर ही बड़ा हो ता है और डर से ही डर पैदा होता है । हम समस्या से समस्याओं को जन्म देते है। जीवन में आई समस्याओं से तनिक भी विचलित होने की आवश्य‍कता नहीं है। आप समस्यांओं के सामने घबराते है तो निश्चित ही आपका विनाश होगा।


मुझे एक घटना याद है । आज से कुछ समय पहले मैं एक ऐसी मुश्किल में फंस गया था कि जिससे जितना भी निकलने की कोशिश करता मेरा मन उसी समस्या के पीछे भागने से नहीं रूकता । मैं दिन में कई बार कोशिश करता की मेरा मन उस समस्या के पीछे ना भागे पर वह मानता ही नहीं । मुझे लगभग 15 दिन हो गए । मेरा किसी काम में मन ही नहीं लगता था। मेरे साथ इन 15 दिनों में इतना कुछ घटा की मैने ने जीवन के लिए कल्प ना की जितनी इमारतें खड़ी की थी वे मेरे एक एक करके सब ढह गई।मैं उस समय अपने आप को इतना विवश महसूस कर रहा था कि मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पाया। कभी-कभी ऐसा होता है कि आप कितने भी सझम हो पर कुछ मामलों में आप इतने विवश हो जाते हो कि चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते । मुझे मेरी असफलता ने झकझोर दिया। मुझे लगा की मैं क्योंी नहीं अपनी मुठ्ठी बंद कर पाया ।मेरे सारे सुख मुठ्ठी से रेत की तरह बह गए। इस तरह के अवसाद में मैने अपने आपको पाया। एक दिन में इन्हीं विचारों में खोया बैठा था । तभी मेरा बेटा घर बनाने के अलग-अलग रंग के टुकड़ेनुमा खिलौने से मेरे पास आकर घर बनाने लगा। मैं उसे बहुत गौर से देख रहा था तो मैने देखा की दो साल का मेरा बेटा उन टुकड़ों को जोड़ने मे लगा है। जो टुकड़ा उससे जुड़ा उसको जोड़कर दूसरे से मिलाने लगा और जो नहीं जुड़ रहा था उसमें अपना दिमाग खर्च ना कर एक तरफ रखता जा रहा था। शायद वह यह सोच रहा था कि पहले जो टुकड़े आपस में जुड़ रहे है उन्हें तो जोड़ा जाए बाकी जो समस्या पैदा कर रहे है उन्हें बाद में देखेंगे। उसके इस तरह के वर्णीकरण ने मेरी आंखे खोल दी। मुझे लगा सच में यह कितना आसान है कि जो जुड़ रहा है उसे तो जोड़ो और जो समस्याण पैदा करते है उन्हे एक तरफ रख दो बाद में देखेंगे।मुझे उससे एक नई प्रेरणा मिली। और मैने तय किया कि जीवन में भी इसी तरह का वर्णीकरण होने से कई मुश्किलों पर विजय आसानी से पाई जा सकती है।

समस्याएं तो हमेशा सामने आती है उससे घबराने की जरूरत नहीं है । सिर्फ जरूरत है उसका वर्गीकरण करने की । उसको टु‍कड़ों में बाटने की जिससे जो चीज आसानी से हल हो जाए से पहले करने से मन को शांति मिलती है और फिर विश्वाकस पैदा होता है कि हम हल कर सकते है । इसी तरह मैने अपनी मुश्किलों को क्लासिफाइड किया और उस बच्चे की तरह हर समस्या के सकारात्म्क पहलूओं को जोड़ा। आप आश्चयर्य मानेंगे कि उन सकारात्मक पहलूओं को जोड़ने के बाद जो समस्या का मूल स्वरूप था वह बदल गया और मुझे हर तरह से हल नजर आने लगा । मेरे अंदर इतना आत्म विश्वास पैदा हुआ कि मुझे लगा की मैं इन मुश्किलों से आसानी से निकल सकता हूं।

मेरा कहने का आशय यह है कि समस्याओं से घबराने की जरूरत नहीं बल्कि उसका सामना करने की जरूरत है । यदि हम समस्याओं का सामना करें तो आप देखेंगे की उसके हल उसी से निकल आते है।हमें समस्या के बारे में ना सोच कर समाधान के बारे में सोचना चाहिए।

Tuesday, July 13, 2010

समस्‍या से ही समाधान

 हमें समस्‍या के विषय में नहीं बल्कि समाधान के विषय में सोचना चाहिए। जो हो गया उसका चिंतन तो हमें छोड़ ही देना चाहिए। जो हो गया है उसमें आप कुछ भी नहीं कर सकते पर अब जो हो सकता है उसमें तो आप जरूर कुछ ना कुछ करके होने वाले परिणाम को प्रभावित कर सकते हो। होता यह है कि जब हम किसी मुश्‍किल में फंस जाते है तो हम समाधान की बात तो सोचते ही नहीं है। बल्कि हम उस समस्‍या के बारे में ही चिंतन किए जाते है। ऐसा कहा भी जाता है कि भय का राक्षस केवल भय को खा कर ही बड़ा हो ता है और डर से ही डर पैदा होता है । हम समस्‍या से समस्‍याओं को जन्‍म देते है। जीवन में आई समस्‍याओं से तनिक भी विचलित होने की आवश्‍यकता नहीं है। आप समस्‍याओं के सामने घबराते है तो निश्‍चित ही आपका विनाश होगा।
मुझे एक घटना याद है । आज से कुछ समय पहले मैं एक ऐसी मुश्किल में फंस गया था कि जिससे जितना भी निकलने की कोशिश करता मेरा मन उसी समस्‍या के पीछे भागने से नहीं रूकता । मैं दिन में कई बार कोशिश करता की मेरा मन उस समस्‍या के पीछे ना भागे पर वह मानता ही नहीं । मुझे लगभग 15 दिन हो गए । मेरा किसी काम में मन ही नहीं लगता था। मेरे साथ इन 15 दिनों में इतना कुछ घटा की मैने ने जीवन के लिए कल्‍पना की जितनी इमारतें खड़ी की थी वे मेरे एक एक करके सब ढह गई।मैं उस समय अपने आप को इतना विवश महसूस कर रहा था कि मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पाया। कभी-कभी ऐसा होता है कि आप कितने भी सझम हो पर कुछ मामलों में आप इतने विवश हो जाते हो कि चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते । मुझे मेरी असफलता ने झकझोर दिया। मुझे लगा की मैं क्‍यों नहीं अपनी मुठ्ठी बंद कर पाया ।मेरे सारे सुख मुठ्ठी से रेत की तरह बह गए। इस तरह के अवसाद में मैने अपने आपको पाया। एक दिन में इन्‍हीं विचारों में खोया बैठा था । तभी मेरा बेटा घर बनाने के अलग-अलग रंग के टुकड़ेनुमा खिलौने से मेरे पास आकर घर बनाने लगा। मैं उसे बहुत गौर से देख रहा था तो मैने देखा की दो साल का मेरा बेटा उन टुकड़ों को जोड़ने मे लगा है। जो टुकड़ा उससे जुड़ा उसको जोड़कर दूसरे से मिलाने लगा और जो नहीं जुड़ रहा था उसमें अपना दिमाग खर्च ना कर एक तरफ रखता जा रहा था। शायद वह यह सोच रहा था कि पहले जो टुकड़े आपस में जुड़ रहे है उन्‍हें तो जोड़ा जाए बाकी जो समस्‍या पैदा कर रहे है उन्‍हें बाद में देखेंगे। उसके इस तरह के वर्णीकरण ने मेरी आंखे खोल दी। मुझे लगा सच में यह कितना आसान है कि जो जुड़ रहा है उसे तो जोड़ो और जो समस्‍या पैदा करते है उन्‍हे एक तरफ रख दो बाद में देखेंगे।मुझे उससे एक नई प्रेरणा मिली। और मैने तय किया कि जीवन में भी इसी तरह का वर्णीकरण होने से कई मुश्किलों पर विजय आसानी से पाई जा सकती है।
समस्‍याएं तो हमेशा सामने आती है उससे घबराने की जरूरत नहीं है । सिर्फ जरूरत है उसका वर्गीकरण करने की । उसको टु‍कड़ों में बाटने की जिससे जो चीज आसानी से हल हो जाए से पहले करने से मन को शांति मिलती है और फिर विश्‍वास पैदा होता है कि हम हल कर सकते है । इसी तरह मैने अपनी मुश्किलों को क्‍लासिफाइड किया और उस बच्‍चे की तरह हर समस्‍या के सकारात्‍मक पहलूओं को जोड़ा। आप आश्‍चर्य मानेंगे कि उन सकारात्‍मक पहलूओं को जोड़ने के बाद जो समस्‍या का मूल स्‍वरूप था वह बदल गया और मुझे हर तरह से हल नजर आने लगा । मेरे अंदर इतना आत्‍मविश्‍वास पैदा हुआ कि मुझे लगा की मैं इन मुश्किलों से आसानी से निकल सकता हूं।
 मेरा कहने का आशय यह है कि समस्‍याओं से घबराने की जरूरत नहीं बल्कि उसका सामना करने की जरूरत है । यदि हम समस्‍याओं का सामना करें तो आप देखेंगे की उसके हल उसी से निकल आते है।हमें समस्‍या के बारे में ना सोच कर समाधान के बारे में सोचना चाहिए।

Wednesday, June 30, 2010

जीवन का संघर्ष

                          जीवन में संघर्ष जीत और हार के लिए नहीं होता। यह आदमी का सबसे बड़ा भ्रम होता है जो वह यह कहता है कि उसने संघर्ष किया फिर भी वह हार गया। हार कभी संघर्ष से प्राप्‍त ही नहीं हो सकी । संघर्ष से तो केवल प्राप्‍त हो सकती है जीत। संघर्ष जीत के लिए ही किया जाता है। हार तो आपके पास हमेशा है उसको पाने के लिए आपको किसी तरह का संघर्ष नहीं करना । आप संघर्ष नहीं करोगे तो हार अपने आप ही आपका दामन थाम लेगी।
व्‍यक्ति को धैयवान होने की जरूरत है किसी भी चीज को पाने के लिए आपको संघर्ष तो करना ही होगा ।
                         जब हम संघर्ष करते है तो हो सकता है की हमें अपेक्षा के अनुरूप परिणाम नहीं मिलें। पर इससे अपने आपको मायूस करने की आवश्‍यकता नहीं है ऐसा होता ही रहता है ।इस मामले में मेरा मानना है की जब हम किसी लक्ष्‍य को लेकर  संघर्ष शुरू करते है तो हमारी लिखित परीक्षा शुरू हो जाती है जिसमें हमें कई मुश्किलों का सही जवाब देना होता है हमारी लगन और धैय से हम अपने लक्ष्‍य के लिए आगे बढ़ते है । लेकिन कई बार पूरी लगन से मेहनत करने के बाद हमें परिणाम नहीं मिलता है तो इस स्थिती में हमें मायूसी नहीं होना चाहिए। जब इस तरह की स्थिती आती है तो हमें जरूर लगता है की हम असफल हो गये है। मेहनत का परिणाम नहीं मिलता और हम अपने आगे के प्रयासों को रोककर असफलता को थाम लेते है। उस विषय से अपना मन हटा लेते है। हमें जरूर लगता है की हम असफल हो गए पर वास्‍तव में यह वक्‍त हमारा लिखित परीक्षा पास करने के बाद साक्षात्‍कार का होता है। इस साक्षात्‍कार में यह तय किया जाता है की आपके पास कितना धैय है,कितना विवेक है और आप आने वाली इन विषम परिस्थितियों में अपना व्‍यवहार किस तरह का रखते हैं। होता यह है की हममें से अधिकांश लोग इस साक्षात्‍कार में बैठते ही नहीं और असफलता का दामन थाम कर विषय से भटक जाते है और अपना रोना रोते नजर आते है।
                     एक बहुत अच्‍छी बात है कि सिद्धि यदि एक मिनिट में मिलती तो हम व्‍यक्ति सिद्धि को प्राप्‍त कर लेता। ऐसा नहीं होता है जो संघर्ष करता है उसके पास सिद्धि आती है। यह संघर्ष भी उस हद तक किया जाता है की संघर्ष आप से सहम जाए।
                    मेरे साथ हाल में एक वाक्‍या हुआ । मेरे मित्र ने जीवन के एक लक्ष्‍य को पाने के लिए बहुत ईमानदारी से काफी लंबा संघर्ष किया। हर बात उसके के पक्ष में होती नजर आ रहीं थी। वह अपने लक्ष्‍य के इतने करीब था की जैसे बहुत कीमती वस्‍तु जिसको हम वर्षो से पाने के लिए प्रयासरत है और उसको को उठाने के लिए हाथ बढ़ने का समय आया तो एक विश्‍वास पात्र ने उसे धक्‍का दे दिया और लक्ष्‍य हाथ से आते-आते ही निकल गया। आप इस स्थिती को समझ सकते है उस समय उसकी हालत क्‍या हो सकती है। मेरा मित्र जिसने इतना संघर्ष किया  उसका हाल तो बेहाल था ।मैं उसकी स्थिती को अच्‍छी तरह से समझ रहा था  ऐसी परिस्थिती में अक्‍सर लोग भटक जाते है।
             मैं और मेरा मित्र एकांत कमरें में चिंतन कर रहें थे कि मेरी आखों के सामने चीटियों का झुंड दिखायी जिसमें से कुछ चीटियां अन्‍न के छोटे-छोटे से टुकड़े के साथ सामूहिक रूप से दरबाजे के सहारे ऊपर चढ़ रहीं थी।कई बार ऐसा हुआ की वे अपने लक्ष्‍य के करीब पहुंचने पर भी गिर जाती थी । मैने देखा की वे हताश नहीं होती थी और फिर सामूहिक प्रयास करने लगती थी एक बार दो बार और तीन बार गिरने के बाद वे चौथी बार में अपने प्रयास में सफल हुई। इस दृष्‍य को देखकर मेरे अंदर एक अजीब सी ऊर्जा का संचार होने लगा । मुझे लगा असफल होने से सब कुछ खत्‍म नहीं होता ।हम फिर से कोशिश करेंगे और जब तक सफल नहीं हो जाते तब तक कोशिश करते रहेंगे। मैने अपने दोस्‍त को समझाया और आपको इस बात को जान कर आश्‍चर्य होगा की जब हम शाम को एक मंदिर में संघर्ष को फिर से शुरू करने के लिए चिंतन कर रहे थे तब हमने सारे पक्षों को अपने सामने रखा तो हम लोग उस समय चकित हो गये जब हमें यह लगा कि हमारे साथ जो कुछ हुआ पर हमारे पक्ष में ही था। यदि यह असफलता हमें नही मिलती तो शायद हम अपने लक्ष्‍य को कभी नहीं पा सकते थे। जिसको हम असफलता मानकर अवसाद में जा रहे थे असल में वह स्थि‍ती ही हमारी सफलता की चाबी थी। मैंने अपने मित्र से कहा की हमने लक्ष्‍य को पाने वाली लिखित परीक्षा पास कर ली और अब इस असफलता के साथ हम सीधे साक्षात्‍कार में पहुंच गये। हमें इस बात से इतना आश्‍चर्य हुआ की लक्ष्‍य प्राप्ति के दौरान होने वाली असफलता हमारे लक्ष्‍य प्राप्ति का दरबाजा है ।
                  मुझे जो एक नई अनुभूति स्‍वयं हुई उससे मैं आपसे शेयर करना
      चाहता था। मुझे फिर ऐसा लगा की अक्‍सर ऐसा हो जाता है की असफलता
      के बाद हम उस  विषय के बारे में सोचना छोड़ देते है। पर ऐसा नहीं होना
      चाहिए हमें चिन्‍तन करना चाहिए की क्‍या वजह रही की हम असफल हुए और
      हमेशा सकारात्‍मक नजरिए से की ऐसा होने पर मुझे कितना फायदा हुआ तो
      आप  देखेगें की आपको हर परिस्थिति अपने पक्ष में लगेगी और आप अपने
      लक्ष्‍य को जरूर प्राप्‍त करेंगे। 

Sunday, June 20, 2010

हार नहीं केवल होती है जीत

            जीवन में संघर्ष जीत और हार के लिए नहीं होता। यह आदमी का सबसे बड़ा भ्रम होता है जो वह यह कहता है कि उसने संघर्ष किया फिर भी वह हार गया। हार कभी संघर्ष से प्राप्‍त ही नहीं हो सकी। संघर्ष से तो केवल प्राप्‍त हो सकती है जीत। संघर्ष जीत के लिए ही किया जाता है। हार तो आपके पास हमेशा है उसको पाने के लिए आपको किसी तरह का संघर्ष नहीं करना । आप संघर्ष नहीं करोगे तो हार अपने आप ही आपका दामन थाम लेगी। व्‍यक्ति को धैर्यवान होने की जरूरत है किसी भी चीज को पाने के लिए आपको संघर्ष तो करना ही होगा ।


             जब हम संघर्ष करते है तो हो सकता है की हमें अपेक्षा के अनुरूप परिणाम नहीं मिलें। पर इससे अपने आपको मायूस करने की आवश्‍यकता नहीं है ऐसा होता ही रहता है ।इस मामले में मेरा मानना है की जब हम किसी लक्ष्‍य को लेकर  संघर्ष शुरू करते है तो हमारी लिखित परीक्षा शुरू हो जाती है जिसमें हमें कई मुश्किलों का सही जवाब देना होता है हमारी लगन और धैय से हम अपने लक्ष्‍य के लिए आगे बढ़ते है । लेकिन कई बार पूरी लगन से मेहनत करने के बाद हमें परिणाम नहीं मिलता है तो इस स्थिती में हमें मायूसी नहीं होना चाहिए। जब इस तरह की स्थिती आती है तो हमें जरूर लगता है की हम असफल हो गये है। मेहनत का परिणाम नहीं मिलता और हम अपने आगे के प्रयासों को रोककर असफलता को थाम लेते है। उस विषय से अपना मन हटा लेते है। हमें जरूर लगता है की हम असफल हो गए पर वास्‍तव में यह वक्‍त हमारा लिखित परीक्षा पास करने के बाद साक्षात्‍कार का होता है। इस साक्षात्‍कार में यह तय किया जाता है की आपके पास कितना धैय है,कितना विवेक है और आप आने वाली इन विषम परिस्थितियों में अपना व्‍यवहार किस तरह का रखते हैं। होता यह है की हममें से अधिकांश लोग इस साक्षात्‍कार में बैठते ही नहीं और असफलता का दामन थाम कर विषय से भटक जाते है और अपना रोना रोते नजर आते है।
                     एक बहुत अच्‍छी बात है कि सिद्धि यदि एक मिनिट में मिलती तो हम व्‍यक्ति सिद्धि को प्राप्‍त कर लेता। ऐसा नहीं होता है जो संघर्ष करता है उसके पास सिद्धि आती है। यह संघर्ष भी उस हद तक किया जाता है की संघर्ष आप से सहम जाए।
                    मेरे साथ हाल में एक वाक्‍या हुआ । मेरे मित्र ने जीवन के एक लक्ष्‍य को पाने के लिए बहुत ईमानदारी से काफी लंबा संघर्ष किया। हर बात उसके के पक्ष में होती नजर आ रहीं थी। वह अपने लक्ष्‍य के इतने करीब था की जैसे बहुत कीमती वस्‍तु जिसको हम वर्षो से पाने के लिए प्रयासरत है और उसको को उठाने के लिए हाथ बढ़ने का समय आया तो एक विश्‍वास पात्र ने उसे धक्‍का दे दिया और लक्ष्‍य हाथ से आते-आते ही निकल गया। आप इस स्थिती को समझ सकते है उस समय उसकी हालत क्‍या हो सकती है। मेरा मित्र जिसने इतना संघर्ष किया  उसका हाल तो बेहाल था ।मैं उसकी स्थिती को अच्‍छी तरह से समझ रहा था  ऐसी परिस्थिती में अक्‍सर लोग भटक जाते है।
             मैं और मेरा मित्र एकांत कमरें में चिंतन कर रहें थे कि मेरी आखों के सामने चीटियों का झुंड दिखायी जिसमें से कुछ चीटियां अन्‍न के छोटे-छोटे से टुकड़े के साथ सामूहिक रूप से दरबाजे के सहारे ऊपर चढ़ रहीं थी।कई बार ऐसा हुआ की वे अपने लक्ष्‍य के करीब पहुंचने पर भी गिर जाती थी । मैने देखा की वे हताश नहीं होती थी और फिर सामूहिक प्रयास करने लगती थी एक बार दो बार और तीन बार गिरने के बाद वे चौथी बार में अपने प्रयास में सफल हुई। इस दृष्‍य को देखकर मेरे अंदर एक अजीब सी ऊर्जा का संचार होने लगा । मुझे लगा असफल होने से सब कुछ खत्‍म नहीं होता ।हम फिर से कोशिश करेंगे और जब तक सफल नहीं हो जाते तब तक कोशिश करते रहेंगे। मैने अपने दोस्‍त को समझाया और आपको इस बात को जान कर आश्‍चर्य होगा की जब हम शाम को एक मंदिर में संघर्ष को फिर से शुरू करने के लिए चिंतन कर रहे थे तब हमने सारे पक्षों को अपने सामने रखा तो हम लोग उस समय चकित हो गये जब हमें यह लगा कि हमारे साथ जो कुछ हुआ पर हमारे पक्ष में ही था। यदि यह असफलता हमें नही मिलती तो शायद हम अपने लक्ष्‍य को कभी नहीं पा सकते थे। जिसको हम असफलता मानकर अवसाद में जा रहे थे असल में वह स्थि‍ती ही हमारी सफलता की चाबी थी। मैंने अपने मित्र से कहा की हमने लक्ष्‍य को पाने वाली लिखित परीक्षा पास कर ली और अब इस असफलता के साथ हम सीधे साक्षात्‍कार में पहुंच गये। हमें इस बात से इतना आश्‍चर्य हुआ की लक्ष्‍य प्राप्ति के दौरान होने वाली असफलता हमारे लक्ष्‍य प्राप्ति का दरबाजा है ।
                  मुझे जो एक नई अनुभूति स्‍वयं हुई उससे मैं आपसे शेयर करना
      चाहता था। मुझे फिर ऐसा लगा की अक्‍सर ऐसा हो जाता है की असफलता
      के बाद हम उस  विषय के बारे में सोचना छोड़ देते है। पर ऐसा नहीं होना
      चाहिए हमें चिन्‍तन करना चाहिए की क्‍या वजह रही की हम असफल हुए और
      हमेशा सकारात्‍मक नजरिए से की ऐसा होने पर मुझे कितना फायदा हुआ तो
      आप  देखेगें की आपको हर परिस्थिति अपने पक्ष में लगेगी और आप अपने
      लक्ष्‍य को जरूर प्राप्‍त करेंगे। 

Friday, June 18, 2010

जीवन के संघर्ष में केवल होती है जीत और जीत

                          जीवन में संघर्ष जीत और हार के लिए नहीं होता। यह आदमी का सबसे बड़ा भ्रम होता है जो वह यह कहता है कि उसने संघर्ष किया फिर भी वह हार गया। हार कभी संघर्ष से प्राप्‍त ही नहीं हो सकी । संघर्ष से तो केवल प्राप्‍त हो सकती है जीत। संघर्ष जीत के लिए ही किया जाता है। हार तो आपके पास हमेशा है उसको पाने के लिए आपको किसी तरह का संघर्ष नहीं करना । आप संघर्ष नहीं करोगे तो हार अपने आप ही आपका दामन थाम लेगी।
व्‍यक्ति को धैयवान होने की जरूरत है किसी भी चीज को पाने के लिए आपको संघर्ष तो करना ही होगा ।
                         जब हम संघर्ष करते है तो हो सकता है की हमें अपेक्षा के अनुरूप परिणाम नहीं मिलें। पर इससे अपने आपको मायूस करने की आवश्‍यकता नहीं है ऐसा होता ही रहता है ।इस मामले में मेरा मानना है की जब हम किसी लक्ष्‍य को लेकर  संघर्ष शुरू करते है तो हमारी लिखित परीक्षा शुरू हो जाती है जिसमें हमें कई मुश्किलों का सही जवाब देना होता है हमारी लगन और धैय से हम अपने लक्ष्‍य के लिए आगे बढ़ते है । लेकिन कई बार पूरी लगन से मेहनत करने के बाद हमें परिणाम नहीं मिलता है तो इस स्थिती में हमें मायूसी नहीं होना चाहिए। जब इस तरह की स्थिती आती है तो हमें जरूर लगता है की हम असफल हो गये है। मेहनत का परिणाम नहीं मिलता और हम अपने आगे के प्रयासों को रोककर असफलता को थाम लेते है। उस विषय से अपना मन हटा लेते है। हमें जरूर लगता है की हम असफल हो गए पर वास्‍तव में यह वक्‍त हमारा लिखित परीक्षा पास करने के बाद साक्षात्‍कार का होता है। इस साक्षात्‍कार में यह तय किया जाता है की आपके पास कितना धैय है,कितना विवेक है और आप आने वाली इन विषम परिस्थितियों में अपना व्‍यवहार किस तरह का रखते हैं। होता यह है की हममें से अधिकांश लोग इस साक्षात्‍कार में बैठते ही नहीं और असफलता का दामन थाम कर विषय से भटक जाते है और अपना रोना रोते नजर आते है।
                     एक बहुत अच्‍छी बात है कि सिद्धि यदि एक मिनिट में मिलती तो हम व्‍यक्ति सिद्धि को प्राप्‍त कर लेता। ऐसा नहीं होता है जो संघर्ष करता है उसके पास सिद्धि आती है। यह संघर्ष भी उस हद तक किया जाता है की संघर्ष आप से सहम जाए।
                    मेरे साथ हाल में एक वाक्‍या हुआ । मेरे मित्र ने जीवन के एक लक्ष्‍य को पाने के लिए बहुत ईमानदारी से काफी लंबा संघर्ष किया। हर बात उसके के पक्ष में होती नजर आ रहीं थी। वह अपने लक्ष्‍य के इतने करीब था की जैसे बहुत कीमती वस्‍तु जिसको हम वर्षो से पाने के लिए प्रयासरत है और उसको को उठाने के लिए हाथ बढ़ने का समय आया तो एक विश्‍वास पात्र ने उसे धक्‍का दे दिया और लक्ष्‍य हाथ से आते-आते ही निकल गया। आप इस स्थिती को समझ सकते है उस समय उसकी हालत क्‍या हो सकती है। मेरा मित्र जिसने इतना संघर्ष किया  उसका हाल तो बेहाल था ।मैं उसकी स्थिती को अच्‍छी तरह से समझ रहा था  ऐसी परिस्थिती में अक्‍सर लोग भटक जाते है।
             मैं और मेरा मित्र एकांत कमरें में चिंतन कर रहें थे कि मेरी आखों के सामने चीटियों का झुंड दिखायी जिसमें से कुछ चीटियां अन्‍न के छोटे-छोटे से टुकड़े के साथ सामूहिक रूप से दरबाजे के सहारे ऊपर चढ़ रहीं थी।कई बार ऐसा हुआ की वे अपने लक्ष्‍य के करीब पहुंचने पर भी गिर जाती थी । मैने देखा की वे हताश नहीं होती थी और फिर सामूहिक प्रयास करने लगती थी एक बार दो बार और तीन बार गिरने के बाद वे चौथी बार में अपने प्रयास में सफल हुई। इस दृष्‍य को देखकर मेरे अंदर एक अजीब सी ऊर्जा का संचार होने लगा । मुझे लगा असफल होने से सब कुछ खत्‍म नहीं होता ।हम फिर से कोशिश करेंगे और जब तक सफल नहीं हो जाते तब तक कोशिश करते रहेंगे। मैने अपने दोस्‍त को समझाया और आपको इस बात को जान कर आश्‍चर्य होगा की जब हम शाम को एक मंदिर में संघर्ष को फिर से शुरू करने के लिए चिंतन कर रहे थे तब हमने सारे पक्षों को अपने सामने रखा तो हम लोग उस समय चकित हो गये जब हमें यह लगा कि हमारे साथ जो कुछ हुआ पर हमारे पक्ष में ही था। यदि यह असफलता हमें नही मिलती तो शायद हम अपने लक्ष्‍य को कभी नहीं पा सकते थे। जिसको हम असफलता मानकर अवसाद में जा रहे थे असल में वह स्थि‍ती ही हमारी सफलता की चाबी थी। मैंने अपने मित्र से कहा की हमने लक्ष्‍य को पाने वाली लिखित परीक्षा पास कर ली और अब इस असफलता के साथ हम सीधे साक्षात्‍कार में पहुंच गये। हमें इस बात से इतना आश्‍चर्य हुआ की लक्ष्‍य प्राप्ति के दौरान होने वाली असफलता हमारे लक्ष्‍य प्राप्ति का दरबाजा है ।
                  मुझे जो एक नई अनुभूति स्‍वयं हुई उससे मैं आपसे शेयर करना
      चाहता था। मुझे फिर ऐसा लगा की अक्‍सर ऐसा हो जाता है की असफलता
      के बाद हम उस  विषय के बारे में सोचना छोड़ देते है। पर ऐसा नहीं होना
      चाहिए हमें चिन्‍तन करना चाहिए की क्‍या वजह रही की हम असफल हुए और
      हमेशा सकारात्‍मक नजरिए से की ऐसा होने पर मुझे कितना फायदा हुआ तो
      आप  देखेगें की आपको हर परिस्थिति अपने पक्ष में लगेगी और आप अपने
      लक्ष्‍य को जरूर प्राप्‍त करेंगे। 

Tuesday, June 15, 2010

दिमाग रूपी आरी की धार तेज करो,मिलेगी मानसिक शांति

         एक आदमी भरी दोपहरी में आरी से पेड़ की डाल काट रहा था। पसीने से लथपथ उस आदमी को देखकर वहां से गुजरते हुए मैनें उससे पूंछा की भाई क्‍या कर रहे हो तो उसने झल्‍लाकर उत्‍तर दिया दिखाई नहीं दे रहा की मैं पेड़ काट रहा हूं। मैने उससे कहां की य‍दि तुम थोडा आराम कर लो और अपनी आरी की धार को तेज कर लो तो तुम्‍हारे काम में आसानी होगी और जल्‍दी भी हो जाएगा। उसको मेरी बात समझ नहीं आयी और वह फिर झल्‍लाया और अपने काम में लग गया।
        आज के इस आपाधापी के युग में ऐसा ही हो रहा है। लोग मशीन की तरह काम में लगे हैं और वे क्‍या कर रहे हैं। कैसे कर रहे हैं । काम के बारे में उनके पास चितंन का समय ही नहीं है । सुबह होते ही उनकी दिनचर्या मशीन की तरह शुरू हो जाती है और रात में सोने तक चलती है । इसके बाद भी शरीर तो रात को जैसे तैसे सो जाता है पर दिमाग की मशीन बंद ही नहीं होती। आज 95 प्रतिशत लोगों की यह समस्‍या है। वे जिस काम को करते है यदि वे उसके बारे में थोड़ा चिन्‍तन करें और अपने दिमाग रूपी आरी का धार को तेज कर लें तो वे जिस काम को कर रहे है उसमें समय भी कम लगेगा और उन्‍हें मानसिक शांति भी मिलेगी।
      होना यह चाहिए की हमें काम के साथ-साथ चितंन से अपने दिमाग रूपी आरी की धार को तेज करते रहना चाहिए। यदि हम प्रतिदिन चिंतन कर अपने काम के उन हर पहलूओं के बारे में विचार करेंगे तो हमें अपनी ग‍ल्तियां समझ आएगी और हम उनको सुधारनें का प्रयास करेंगे। जिससे हम कम समय में अधिक काम कर सकेंगे। हर समय जुझने का आशय यह नहीं होता है कि हम बहुत काम करते हैं हम बहुत व्‍यस्‍त हैं । हम दुनिया को धोखा दे सकते हैं पर अपने आप को नहीं । हमारे दिन भर किए काम का प‍रिणाम क्‍या निकला यह सबसे महत्‍वपूर्ण तथ्‍य होता है ।
   जिस काम को आप दिन भर से करने का प्रयास कर रहे हों। हो सकता है की यदि आप उसके तकनीकी पहलूओं पर ध्‍यान देते तो शायद वह 1 घंटे में भी हो सकता था। फिर ऐसा भी हो सकता है की वह काम जिसके लिए आप ने दिनभर खपा दिया उसके बारे में आपको बाद में पता लगा की यह व्‍यर्थ था। कई बातें हो सकती है । सबसे अच्‍छी बात यह होना चाहिए की हमें चिंतन करना चाहिए ।आप देखिए की आप यदि प्रतिदिन अपनी कार्यप्रणाली को लेकर चिंतन करते है तो आप की कार्यप्रणाली में जो परिवर्तन आएगा उसकी आप कल्‍पना नहीं कर सकते ।
    मैने अक्‍सर देखा है की कार्यालयों में हर उंचे पद पर बैठे अधिकारियों की आदत होती है की वे अपने से छोटे कर्मचारियों के कामों को भी खुद करने की इक्‍छा रखते है। वे अक्‍सर अपने औहदे का काम भूलकर छोटे- छोटे कामों में अपने आपको ज्‍यादा व्‍यस्‍त रखते है और पूरा दिन उसी में निकाल देते है । यह गलत है जो काम जिस व्‍यक्ति का उसे ही करना चाहिए। आपके मार्गदर्शन से ही काम हो जाना चाहिए ना की आप स्‍वयं फाइलों को निपटाने लगे।
        जब एक भृत्‍य को अवकाश चाहिए होता है तो वह एक पेज पूरा लिखकर लाता है अपनी समस्‍याओं के साथ। जब छोटे अधिकारी को अवकाश चाहिए होता है तो वह लगभग आधा पेज लिखता है। उससे बड़े अधिकारी को अवकाश चाहिए होता है तो वह चार लाइनें लिखता है और जब सबसे बड़े अधिकारी को छुट्टी चाहिए होती है तो वह केवल इशारा करता है और उसका अवकाश स्‍वीकृत हो जाता है ।
          इस बात का आशय यह है कि हम जैसे जैसे बड़े पद पर पहुंचते है वैसे वैसे ही हमारे बोलने और लिखने के शब्‍द कम होते जाते है । यदि हम इन बातों का व्‍यवहारिक जीवन में ध्‍यान रखकर काम करें तो हमें कई समस्‍याओं और मानसिक तनाव से मुक्ति मिल सकती है।